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Image एमएसएमई की परिभाषा

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास (एमएसएमईडी) अधिनियम, 2006 के प्रावधानों के अनुसार, एमएसएमई की संशोधित परिभाषा राजपत्र अधिसूचना सं. एस.ओ.1702 (ई) दिनांक 01 जून, 2020 एवं राजपत्र अधिसूचना सं. एस.ओ.2119(ई) दिनांक 26 जून, 2020 के जरिए संप्रेषित किया गया है. एमएसएमई की संशोधित परिभाषा 1 जुलाई, 2020 से प्रभावी है.

किसी उद्यम को निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर सूक्ष्म, लघु या मध्यम उद्यम के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा -

क्षेत्र

वर्गीकरण का आधार

सूक्ष्म उद्यम

जहां प्लांट एवं मशीनरी या उपस्कर में निवेश एक करोड़ रुपए से अधिक नहीं है और कुल कारोबार पांच करोड़ रुपए से अधिक नहीं है.

लघु उद्यम

जहां प्लांट एवं मशीनरी या उपस्कर में निवेश दस करोड़ रुपए से अधिक नहीं है और कुल कारोबार पचास करोड़ रुपए से अधिक नहीं है.

मध्यम उद्यम

जहां प्लांट एवं मशीनरी या उपस्कर में निवेश पचास करोड़ रुपए से अधिक नहीं है और कुल कारोबार दो सौ पचास करोड़ रुपए से अधिक नहीं है.

वर्गीकरण के लिए निवेश एवं कुल कारोबार के सम्मिश्र मानदंड:

  • किसी उद्यम को सूक्ष्म, लघु या मध्यम के रूप में वर्गीकृत करने हेतु निवेश एवं कुल कारोबार का एक सम्मिश्र मानदंड लागू होगा.
  • यदि कोई उद्यम निवेश या कुल कारोबार के दो मानदंडों में से किसी एक में अपनी वर्तमान श्रेणी के लिए निर्दिष्ट अधिकतम सीमा को पार करता है, तो वह उस श्रेणी में मौजूद नहीं रहेगा और अगली उच्च श्रेणी में रखा जाएगा लेकिन कोई भी उद्यम निम्न श्रेणी में तब तक नहीं रखा जाएगा जब तक कि यह निवेश एवं कुल कारोबार के दोनों के मानदंडों में अपनी वर्तमान श्रेणी के लिए निर्दिष्ट उच्चतम सीमा से नीचे नहीं चला जाता है.
  • वस्तु एवं सेवा कर पहचान संख्या (जीएसटीआईएन) के साथ एक ही स्थायी खाता संख्या (पैन) के सापेक्ष सूचीबद्ध सभी इकाइयों को सामूहिक रूप से एक उद्यम माना जाएगा और ऐसी सभी इकाइयों के लिए कुल कारोबार एवं निवेश के आंकड़े एक साथ देखे जाएंगे और केवल कुल मूल्य को सूक्ष्म, लघु या मध्यम उद्यम के रूप में श्रेणी तय करने हेतु विचार किया जाएगा.

"उद्यम पंजीकरण के लिए ऑनलाइन फॉर्म प्रासंगिक विगत वर्ष के प्रत्येक वर्ष 31 मार्च को ह्रासित लागत को कैप्चर करता है. इसलिए, राजपत्र अधिसूचना सं. एस.ओ. 2119(ई) दिनांक 26 जून, 2020 के सभी उद्देश्यों के लिए सभी उद्यमों हेतु प्लांट एवं मशीनरी या उपस्कर का मूल्य से तात्पर्य आयकर अधिनियम में परिभाषित वित्तीय वर्ष के अंत में अवलिखित मूल्य (डब्लूडीवी) होगा एवं न कि अधिग्रहण की लागत या मूल कीमत, जो पहले के वर्गीकरण मानदंड के संदर्भ में लागू था”.


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